पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/४७

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परिच्छेद)
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रङ्गमहल में हलाहल।

डालने पर उतारूं.होगए थे कि इतने ही में एक हज़ार शाही सिपा- हियों ने उन आतताइयों को आकर घेर लिया और थोड़ी सी मार काट के बाद उन सबके सब फ़सादियों को गिरफ्तार करके जेल- खाने की राह ली। बात की बात में मैदान साफ़ होगया और वहां पर सिवाय उन तीनों फ़क़ीरों के और कोई न रह गया । क्यों कि उस मैदान में फ़सादी मुसलमानों के अलावे एक भी हिन्दू न था।

बदमाशों के गिरफ्तार होकर जाने के साथही मन्दिर का सदर फाटक खुला और भीतर से कई ब्राह्मण निकल, उस बुड्ढे फ़क़ीर को झुक झुक कर सलाम करने और असीस देने लगे। बुड्ढे ने सलाम का जवाब देकर बड़ी नर्मी के साथ एक ब्राह्मण से पूछा,--

"पंडतजी! आपका नाम क्या है?"

ब्राह्मण,--" हरिहरशर्मा।"

बुड्ढा फ़क़ीर,-" क्या आप मिहरबानी करके यह बतलाएंगे कि दर असल, इस फ़साद की जड़ क्या है?"

हरिहर,--"जनाब, शाहसाहब ! क्या आप मेरे कहने पर विश्वास करेंगे?"

बुड्ढा फ़क़ीर,--"बेशक, आपकी बातों पर मैं यकीन करूंगा; क्योंकि यह बात मैं बखूबी जानता हूं कि हिन्दू कौम से बढ़कर दुनियां में सच बोलने वाली दूसरी जात नहीं है। इस कौम जैसी हमदर्दी, दियानतदारी, गरीबपर्वरी, फ़र्मावरी और पाक़रूई दुनियां के पर्दे पर किसी दूसरी ज़ात में हई नहीं । आप किसी बात का अंदेशा न करें और जो कुछ सञ्चा हाल हो, दिल खोलकर बेख़ौफ़ कहें।"

हरिहर,-"अहा ! हज़त आप जैसे बुद्धिमान और उदार- हृदय महापुरुष, मुसलमान जाति में कितने होंगे? अहा! आपके हमलोग आजन्म कृतज्ञ रहेंगे, इसलिये कि केवल आज आपही के कारण इस मन्दिर का अस्तित्व और हम लोगों का प्राण बचगया नहीं तो सत्यानाश होने में बिलम्बही क्या था?"

बुड्ढा फ़क़ीर,-"जनाब ! यह सब उसी पाक पर्वरदिगारका मिहर है ; इन्सान की क्या ताक़त कि उसकी मर्जी के ख़िलाफ़ कुछ कर सके।"