पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/४८

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(छठां
रज़ीयाबेगम।

हरिहर,-" अच्छा तो सुनिए,- उत्पातियों ने जो यह दोष लगाया था कि,-'किसी शख़्स ने फलां मसजिद में सूवर का गोश्त फेंका है;' यह बात बिल्कुल झूठ और बेजड़ है। आप इस बात को सच माने कि जो सच मुच हिन्दू होगा, वह कभी किसी भी विभिन्न धर्मावलम्बी के उपासनागार में उनके धर्म के विरुद्ध किसी अपवित्र वस्तु को न फेंकेगा। मुसलमान, हिन्दुओं के साथ जैसा वर्ताव करते हैं, इसे सारा संसार जानता है, पर क्या आप ऐसा एक भी प्रमाण दे सकते हैं कि किसी हिन्दू ने भी कहीं किसी मसजिद को ढाहा या कुरान शरीफ़ को जलाया है ? यह बात शान्त और धर्मभीरु हिन्दुओं के स्वभाव से लाखों कोस दूर है।"

बुड्ढा फ़क़ीर,-" बेशक, बेशक, पंडतजी ! बाक़ई, बेचारे हिन्दू बहुत ही ग़मखोर और सच्चे होते हैं। मगर, हां! उस बात को तो आपने अभीतक बतलाया ही नहीं कि इस फ़साद का वायस क्या है?"

हरिहर,-" बात यह है कि हमलोग सदा से इस मन्दिर में अपने देवता की पूजा करते आते हैं, उसमें घड़ी घंटे भी बजते हैं, शंख भी बजता है, परन्तु जब तब मुसलमान यहां आकर घड़ी, घंटे और शंख बजाने को मना करते और धमकाते रहते हैं। इसी बात पर कई मुसलमानों से परसों कुछ कहा सुनी होगई थी, सो कल रात को बहुत से मुसलमान हथियार लेलेकर आए और मंदिर को गोशाला से बलपूर्वक चालीस गऊ खोल लेगए, जो अभी तक जीती, जागती एक ठिकाने पर बंधी हुई हैं । आज सबेरे हमलोगों ने उनलोगों के पास जाकर बहुत कुछ बिनती की और चालीस गउओं के हज़ार रुपए भी देने चाहे, पर वे लोग ज़रा न पसीजे और इस समय तीसरे पहर को गोल बांधकर इसमन्दिर पर आ टूटे थे।"

बुड्ढा फ़कीर,-" बेशक, आपने ये सब हालात बिल्कुल सही बयान किए हैं, मैं भी इसी शहर में घूमा करता हूं, इस वजहसे मुझ से शहर की कोई वार्दात छिपी नहीं रह सकती। मगर क्यों साहब ! जब कि कुछ शोहदों ने आपके यहां एक तौर से डांका डाला और आपलोगों की आर्जु मिन्नत पर कुछ भी ख़याल न किया तो मुनासिब था कि आपलोग सुल्ताना रज़ीया बेगम साहिबा के