हुजूर में इस बात की नालिश करते।"
हरिहर,-"आपने बहुत ही ठीक कहा है, किन्तु क्या करैं ! यद्यपि हमलोग यह बात सुनते रहते हैं कि बेगम साहिबा खुद दर्बार में कबा और ताज पहन कर बैठतीं और बड़े अदल इन्साफ़ के साथ लोगों की नालिश फ़र्याद सुनती हैं, परन्तु यह बात कहां तक सच है, इसे परमेश्वर जाने । मुसलमानों के लिये बेगम साहिबा के दर्धार में रोक टोक है या नहीं, इसे हम नहीं जानते; किन्तु हम लोग अपनी गउओं की गुहार सुनाने दर्वार में जाया चाहते थे, परन्तु पेशकार ने हमलोगों को निकलवा दिया, तब हमलोगों ने हज़ार रुपए देकर गौओं को छुड़ाना चाहा था, उसका जो कुछ नतीजा हुआ, उसे तो आपने अपनी आँखों देख लिया।"
इन बातों को बुड्ढा फ़क़ीर बड़े गौर से सुनता रहा और जब हरिहरशर्मा कह चुके तो उसने कुछ जोश में आकर कहा,-
हैं ! यह क्या बात है ? बेगम साहिबा का तो यह आम हुक्म है कि,-'जिस अदने या आले का जी चाहे, वेखटके दर्बार में हाज़िर होकर अपनी फ़र्याद सुनावे।
हरिहर -" आपक कहने को मैं काट नहीं सकता, किन्तु जो सच बात थी, वह आपसे कही गई । सचमुच हमलोग दर्बार तक न पहुंचने पाए और बीचही में से धता किए गए।"
बुड्ढा फकीर,-"अच्छा; आप उस शख्स का नाम बतलासकते हैं कि वह कौनसा पेशकार है, जिसने आपलोगों को दर्बार में जाने से रोका और उलटा वापस किया?"
हरिहर,--" महावतख़ा!"
बुड्ढा फ़कोर,--" खैर खुदा के फ़ज़ल से आज आप लोग बच गए, इसके लिये अपने खुदा का शुक्रिया अदा कीजिए; अत्व बंदा रुखसत होता है।"
हरिहर,-" शाहसाहब ! यदि कुछ अनुचित न हो तो कुछ थोडासा श्रीठाकुरजी का प्रसाद पाकर जल पीजिए।
यह सुन, बुड्ढा मुस्कुरा कर उठ खड़ा हुआ और बोला, 'साहब ! मुझका आपके ठाकुरजी की शोरनो से कुछ इन्कार नहीं, मगर इस वक्त मुआफ़ कीजिए बंदा तो रोज़ ही सदा लगाता घूमता फिरता है, किसी दिन आपका भी मिहमान बन
(९) न०