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पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/५३

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परिच्छेद)
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रङ्गमहल में हलाहल।

जिसपर सोने का जड़ाऊ सिंहासन रक्खा रहता था। जब बेगम दर्बार में आया चाहती, महल की खिड़की से आती, जो तख्त के पीछे ही दीवार में बनी थी। वह उसी राह से अपनी सहेलियों और बांदियों के साथ आती और दर्बार बर्खास्त होने के समय उसी रास्ते से महल के अन्दर चली जाती थी ! तख्त के पीछे चबू- तरे पर इतनी जगह ख़ाली थी, जिसपर सौ बांदियां मज़ में खड़ी हो सकती थीं; और तख़्त के अगल बगल सोने की कुर्सियों पर सौसन और गुलशन के बैठने की जगह थी। तख्त के सामने, नीचे, चबूतरे पर दाहिनी ओर वज़ीर के बैठने के लिये चांदी की कुर्सी लगी रहती थी और बाईं ओर पेशकार के बैठने के वास्ते सन्दली कुर्सी। फिर नीचे, अर्थात् दर्बार-हाल में जमीन में, अमले, फैले, अमीर, उमरा, वहदेदार, ज़िमीदार इत्यादि अपनी अपनी योग्यता के अनुसार बैठते थे। तखत के सामने वाली जगह खाली रहती: थी, वहां मुद्दई, मुद्दालह आआ कर खड़े होते और नालिश फ़र्याद करते थे। वहां नंगी तल्वारे लिये लाल वर्दीवाले सिपाही बराबर कत्तार बांधे खड़े रहते और दर्वार-हाल के नीचे सज धज कर पांच सौ सवार खड़े होते थे, जिनके घोड़ों का रुख दर्बार की ओर रहता था और जिनके चमकते हुए भाले की नोक में लाल झडियां फहराया करती थीं। यह दर्बार हफ्ते में केवल दो दिन, अर्थात् जुम्मा और जुमेरात के दिन नहीं लगता था । यही दस्तूर और कचहरियों का भी था।

आज दर्वार-हाल के नीचे सामने, लंबे चौड़े मैदान में बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई है, जिसमें कुछ फ़र्यादी हैं और कुछ तमाशा देखनेवाले । क्योंकि कल बेगम साहिबा की ओर से सारे शहर में इस बात की मनादी फेरी गई थी कि-,"जिस शख्स को जो कुछ फ़र्याद करना हो, वह बेखटके दर्धार में चला आवे । उसकी नालिश सुनी जायगी और उसपर गौर करके बड़े अदल इन्साफ़ के साथ मुकद्दमा फ़ैसल किया जायगा । अगर कोई अहलकार सर्कारी, किसी फ़र्यादी को चाहे वह किसी हैसियत का क्यों न हो, दर्बार शाही में आने से रोकेगा तो इस बात के सुबूत होने पर वह क़त्ल किया जायगा। "इत्यादि।

यही कारण था कि आज भीड़ का कोई ठौर ठिकाना नहीं है,