किन्तु प्रताप की यह महिमा है कि कहीं पर ज़रा भी शोर गुल, या बकबक, झकझक, अथवा बेसिल्सिला नहीं है और सब चुप- चाप, करीने से दर्बार हाल के नीचे--सामनेवाले मैदान में--पेड़ों की छाया में बैठे हुए हैं । वहीं पर एक जगह सिपाहियों की हिफ़ाजत में बेड़ी हथकड़ियों से मज़बूर वे सब मुसलमान कैदी भी बैठाए गए हैं, जो एक मन्दिर के ढाह देने के इरादा करने और वहांके ब्राह्मणों के कत्ल कर डालने पर उतारू होने के जुर्म में गिरफ्तार किए गए हैं, जिसका हाल हम पहिले लिख आए हैं।
एक जगह पर उसी मंदिर के पुजारी या अधिष्ठाता हरिहर- शर्मा भी बहुत से ब्राह्मणों के साथ बैठे हुए हैं और एक जगह बहुत सी गउवें बंधी हुई हैं।
आठ बजने में अब थोड़ी ही देर है और दर्बार, सारे दर्बारियों से भर गया है । लोग करीने से अपनी अपनी जगह पर बैठे हुए बेगम साहिवा के तशरीफ़ लाने का आसरा देख रहे हैं । इतनेही में किले के फाटक पर तो दनकने लगी, जो बेगम साहिबा के दर्बार में पधारने की सूचना देती थीं । इधर घड़ियावल ने ज्योही आठ बजाया, त्योही महल की खिड़को, जो तख्त के पीछे थी, खुली, और बांदियां निकलकर तख्त के पीछे खड़ी होगईं; फिर अपनी.दोनो सखियों के साथ रज़ीया आई और तख्त पर बैठ गई। उस समय सब दर्बारी आदि जितने लोग वहां पर थे, सबके सब खड़े होगए थे और बेगम के बैठने पर सभोंने तीन तीन बार जमीन चूम कर शाहानः सलाम किया । सिपाही और सवार अपनी अपनी जगह पर खड़े खड़े तल्वार और भाला टेककर भादाब बजा लाए और सुरीली नफ़ीरी बजने लगी। दस मिनट तक शहनाई बजा की, तब तक सब अपनी अपनी जगह पर अदब से झुके हुए सड़ रहे; फिर शहनाई का बजना बन्द हुआ और बेगम का इशारा पाकर उसकी सहेलियां और दर्बारी लोग अपनी अपनी जगह पर बैठ गए।
इसके बाद बेगम ने कुछ नर्मी और गर्मी के साथ पेशकार को धीरे धीरे इसलिये कड़ी कड़ी. पर ज़रा मुलायम फ़िटकार सुनाई कि उसने चन्द लोगों को फ़र्याद करने के लिये दर्बार में आने से रोका था। किन्तु प्रताप भी क्याही विचित्र बस्तु है कि पेशकार