पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
परिच्छेद)
५५
रङ्गमहल में हलाहल।

आपने कौनसी तबीयतदारी देखी?"

इस पर सौसन मारे लजा के सिमट गई और कुछ देर चुप रह कर, उसने दूसरी बात छेड़दी,-कहा,-

"आपके हाथ में यह कौनसी किताब है?"

याकूब,-'यह 'तवारीख़ यूनान' है। मेरा दिल तवारीखों में बहुत लगता है, इसलिये जब मैं काम से फुर्सत पाता हूं और कोई उम्दः तवारीख़ हाथ लग जाती है तो फुर्सत का वक्त उसीके देखने में सर्फ करता हूँ।"

सौसन,-"ऐसा! तो इसमें वहांके गुज़श्तः हालात होंगे?"

याकूब,-"हां यह तो हई है, मगर इसके अलावे सल्तनत के मज़बूत करने, बढ़ाने और काइम रखने के बहुत से तरीक़ ऐसी उम्दगी के साथ बयान किए गए हैं और उन पर ऐसी अच्छी बहस की गई है कि जिसके अमल में लाने से एक समझदार इन्सान ख़ासे वज़ीर की लियाक़त हासिल कर सकता और कम. ज़ोर सल्तनत को मजबूत बनाकर क्राइम रख सकता है।"

सौसन,-"तब तो यह निहात ही उम्दः किताब है । वल्लाह ! मेरा भी दिल चाहता है कि मैं एक मर्तबः इसकी सैर करूं।"

याकब,-(किताब उसके आगे बढ़ाकर ) "लीजिए शौक से देखिए ! मगर इसकी जुबान तुर्की है।"

सौसन,-"मैं तुर्को ज़बान बखूबी समझ लेती हूँ।"

याकूब,- "( खुश होकर ) "अलहम्द् लिल्लाह ! तब तो आप वड़ी आलिम औरत नज़र आती हैं!!!"

सौसन,-( शर्माकर ) “जी नहीं, पांच चार जुबानों के अलावे और मैं जानती ही क्या हूँ?

याकूब,-"वल्लाह ! इतना क्या थोड़ा है ! क्या आप" मिहरवानी करके यह बतलाएंगी कि आप कौन कौनसी जुबान दखल रखती हैं?"

सौसन,-"हज़रत ! मैं कुछ भी नहीं, जानतीं।"

याकूब,-"आपको मेरे सर की कसम, सच बतलाइए।"

सौसन,-" अरबी, फारसी, तुर्की, रूमी, और हिन्दुस्तानी जुबान मैं कुछ कुछ जानती हूँ।"

याककब,-" वाह, तब तो आप बहुत कुछ जानती हैं; और इस