गवारा नहीं है कि आप ज़मीन में तशरीफ़ रक्खें।"
सौसन,-"वल्लाह, बतलाइए तो सही, कि जब तफै़न से ज़िद है तो यह मामला क्योंकर तय हो सकता है!"
याकूब,-"लिल्लाह, मैं अपनी ज़िद से बाज़ आया, अब आप जो कुछ कहेंगी, बिला उज़ उसे मैं मान लंगा।"
सौसन,-"शुक्र है, खुदा का कि आप बहुत जल्द राह पर आगए; खैर, तो बिस्मिल्लाह कीजिए, चलिए, चौकी पर बैठिए।"
"अब क्या फ़क़त मैंही बैलूंगा।” यो कहकर उसने सौसन का हाथ पकड़ कर उठाया और उसे चौकी पर बैठा कर उसके बगल में आप भी बैठ गया । उस स्पर्श-सुख से सौसन के रोम रोम से सात्विक भाव की तरंगें निकलने लग गई थी, और कम्प, रोमाञ्च, प्रस्वेद, स्वरभंग, वैवर्ण्य आदि सात्विक लक्षण उसके चेहरे और सारे शरीर से प्रगट होने लगे थे । याकूब के मुख और शरीर में भी ये लक्षण दिखलाई पड़ने लगे थे, पर वे सौसन की भांति उतने पुष्ट और बलिष्ट न थे; कदाचित यह उसकी अद्वितीय वीरता का प्रताप हो! तथापि वह एक दम उन भावों से रहित न था।
थोड़ी देर तक वे दोनो एक दूसरे के बगल में चुपचाप बैठे रहे, फिर याकूब ने कहा,--
"आज मुझसा खुशनसीब शख्स दुनियां में दूसरा न होगा। सौसन ने यह सुन, शर्मा कर सिर झुका लिया और बात टालने के मिस से कहा,--
"साहब ! उस रोज़ तो आपने, वल्लाह ! ग़ज़न्न का जौहर दिख- लाया था !!! मैं उसी रोज़ से इस फ़िराक में थी कि किसी ढव से मौका पाऊँ तो आपसे चार चश्म करके उस सिपहगरी के लिये आपको मुबारकबाद दूं।"
याकूब,-"तब तो जनाब ! खुदा के फ़ज़ल से बह दिन मेरे लिये बहुतही अच्छा गुज़रा कि मैंने नेकनामी के साथ आपके दिल में जगह पाई!"
सौसन,-"( शर्माकर ) "क्या खूब ! आप जैसे बहादुर हैं, वैसे ही तबीयतदार भी मालूम देते हैं।"
याकूब,-"क्या सचमुच ! वल्लाह, सच बतलाइएगा कि मुझमें"