पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/७३

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परिच्छेद)
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रङ्गमहल में हलाहल।


और पीछे खड़ी हो गई । बाग़ की मालिनों ने आकर झुक झुक कर सलाम किया और फूलों की डालियां, फलों के चंगेर, फूलों के गजरे और गुलदस्ते बेगम के सामने संगमर्मर की चौकी पर सजा दिए, जिनकी खुशबू ने चुटीले दिल-वालियों के जी में और भी बेचैनी पैदा कर दी और वे सभी अपने अपने दिल की चोट का इलाज ढूंढ़ने लगीं।

सौसन और गुलशन की आख बचा कर ज़ोहरा ने बेगम से आंखें मिला कर कुछ इशारा किया और उसका जवाब इशारे ही में पाकर वह वहांसे चलदी । उसके जाने पर रज़ीया ने मुहं फेर कर सौसन और गुलशन के चेहरे की ओर देखा, पर वे दोनों दिल की बेचैनी से इतनी बदहवास थी कि उन दोनों में से किसीने भी बेगम को अपनी ओर देख कर घूरते न देखा । उनमें गुलशन तो हथेली पर ठोढ़ी रक्खे हुए किसी पेड़ की डाल पर नज़र गड़ाए हुई थी और सौसन घुटने पर सिर रक्खे हुई धर्ती की ओर निहार रही थी। अपनी दोनो सहेलियों के यह ढंग देख, मारे गुस्से के रजीया की आंखों में सुखी छागई. पर न जाने क्या सोच समझ कर वह चुप हो गई और तालाब में लड़ती हुई मछलियों की बहार देखने लगी।

अच्छा, इन सभों को तो यहीं तालाब के किनारे बैठी रहने दीजिए और चलिए, पाठक ! देखें, जोहरा अपना क्या जौहर दिखलाती है।

समय चार बजे दिन का था, जब रज़ीया बेगम बाग़ में टहलने आई थी । सो उससे इशारे ही में कुछ बातें करके ज़ोहरा इधर उधर घूमती फिरती, उस लतामंडप के पास जा पहुंची, जहां पर कुछ देर पहिले अयूब और गुलशन में कुछ प्रेम की बातें हुई थीं। गुलशन तो उसी समय वहांसे चलदो थी, जो अब बेगम के साथ तालाब के किनारे बैठो हुई है, पर उसका आशिक अयूब उसी कुञ्ज के अन्दर अभीतक बदहवास पड़ा हुआ है; जैसा कि हम कह आए हैं।

ज़ोहरा उसी कुञ्ज के भीतर घुस गई और पहिले उसने लता की ओर से अयूब को देखा और फिर धीरे धीरे दबे पांव, वह वहां पर जो खड़ी हुई, जहां पर संगमर्मर के चबूतरे का ढासना

(९) न०