पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/९५

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परिच्छेद)
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रङ्गमहल में हलाहल।


यों कह कर ज़ोहरा ने अपने कुत्ते के जेब में से एक काग़ज़ निकाल कर याकूब के हाथ में दे दिया, जिसे उसने शमादान के पास लेजा कर भली भांति पढ़ा। वह मचमुच रज़ीया बेगम का दस्तखती हुक्मनामा था और उस पर तारीख, बार और सन के अलावे रजीया की मुहर भी थी। उसमें याकूब को केवल यही हुक्म दिया गया था कि,-" इस वक्त ज़ोहरा तुमको जहां लेजाना चाहे, बिला उज्र तुम उसके साथ जाओ।"

याकूब ने खूब ग़ौर के साथ उस हुक्मनामे को देखा और फिर दर्बारी कपड़े पहिन और उस हुक्मनामे को अपने जेब में रख कर ज़ोहरा से कहा,-

"ले, चलिए; अब आप मुझे जहां ले जाना चाहें, मैं चिला उन आपके हमराह चलने के वास्ते तैयार हूं।"

"आइए; कह कर ज़ोहरा बंगले से बाहर हुई और याकब भी बंगले का दर्वाजा बंद करके उसके साथ हुआ। फिर वे दोनों चुपचाप एक चोर-दर्वाजे की राह धाग़ के भीतरी हिस्से में पहुंचे और ज़ोहरा याकूब को इधर उधर घुमाती फिराती, एक गुंजान लतामंडप में पहुंची। वहां पहुंच कर उसने याकूब से कहा,-

"जनाब ! माफ़ कीजिएगा; यहांसे आपको अपनी आंखों पर पट्टी बांध कर मेरे साथ चलना होगा।"

याकूब, "शाही हुक्मनामे में इसका कोई जिक्र नहीं है, इस लिये ऐसा मैं नहीं किया चाहता।

ज़ोहरा,-"इस वक्त जो कुछ मैं कहूंगी, बिला उज़ आपको उसकी तामीली करनी पड़ेगी"

याकूब,-"हर्गिज़ नहीं, इस भरोसे न रहिएगा! मैं फ़क़त उस हुक्मनामे के बमूज़िब आपके साथ, जहां आप ले चलें, चलने के लिये तैयार हूं; इसके अलावे बगैर बेगम साहिबा के हुक्म के, आपके कहने से मैं कुछ भी नहीं करूंगा।"

ज़ोहरा,-"क्या आप यह नहीं जानते कि इस वक्त मेरी हुक्म, बेगम साहिबा का ही हुक्म है?"

याकूब,-"जब तक इस बात का पर्वाना आप न दिखलावें; आपके हुक्म की इज्जत मैं उतनीही कर सकता हूं जितना कि आप मेरे हुक्म का लिहाज़ कर सकती हों!"