सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८६
(बारहवां
रज़ीयाबेगम।

को इस वक्त तलब किया है?"

ज़ोहरा,-"जब कि सुलसाना की ऐसीही मर्जी है कि आप फ़ौरन उनके रूबरू हाज़िर किए जांय, तो फिर इसमें आपको उन क्या है ?

याकूब-"मेरी मजाल क्या है, जो मैं उज्र कर सकू ! खैर चलिए; मगर यह तो बतलाइए कि इस वक्त सुलताना कहां तश- रोफ़ रखती हैं?"

ज़ोहरा,-"खास, अपनी ख़ाबग़ाह में।"

याकूब,-"ख़ास, अपनी ख़ाबग़ाह में !!! वहां पर इस वक़्त और कौन कौन हैं?"

ज़ोहरा,-"और कोई भी वहां पर नहीं है।"

याकूब,-(ताज्जुब से) "और कोई भी वहां पर नहीं है !!! सिर्फ बेगम साहिबा, तनहां अपनी ख़ाबग़ह में तशरीफ़ रखती हैं और आधीरात के वक्त तुम, बी ज़ोहरी ! मुझे चुपचाप वहां ले जाया चाहती हो?"

जोहरा,-"आपको इन सब दलीलों से क्या मतलब ? जो सर्कारी हुक्म है, उसे जल्द तामील कीजिए और फ़ौरन दर्बारी कपड़े पहन कर मेरे साथ होइए।"

याकूब,-"मगर नहीं, बी ज़ोहरा ! मैं आपके साथ इस वक्त कहीं नहीं जा सकता।"

ज़ोहरा,-(झलाकर ) " क्यों !"

याकूब,-"इसलिये कि यह आधीरात का,-सन्नाटे का वक्त है, रात अंधेरी है और आप एक खूबसूरत और नौजवान औरत हैं।"

जोहरा,-"तो क्या बेगम साहिबा के हुक्म की आप बेइज्जती किया चाहते हैं?

याकूब,-"लाहौल बलाकूवत ! अजी, बी ! बेगम के हुक्म की बेइज्जती तो तब समझी जाती, जब आप बेगम साहिबा का कोई हुक्मनामा मुझे देतीं और उस पर मैं अमल न करता।"

ज़ोहरा,-"लीजिए. सुलताना का हुक्म़नामा भी मैं अपने साथ लाई हूँ । मैं यह बखूबी समझती थी कि आप अक्ल दर्जे के जिद्दी आदमी हैं, मेरी बातों पर आपको एतकाद न होगा।"