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पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/९८

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(बारहवां
रज़ीयाबेगम।


इसके अनुसार यदि हम उस ख़ाबगाह के विषय में कुछ लिखें भी तो वह शायद उसका ठीक ठीक वर्णन कभी न होगा; हां ! सपने का प्रलाप वह अवश्य समझा जायगा; अस्तु।

सुलताना की खामगाह एक चालीस हाथ लंबी चौड़ी बारहदरो थी, जो देखने से बिलकुल संगमर्मर से बनी हुई मालूम पड़ती थी। धह चिकनो चिकनी संगमर्मर की पटिया से पटी हुई थी और छत तथा दीवारों में जवाहिरात के बैल, बूटे, चरिन्द, परिन्द, और तरह तरह के नकशे बने हुए थे, जिसकी लागत का अन्दाज़ा करना मानो अपनी अकल से हाथ धोना था। बिल्लौरी झाड़ और हांड़ियां छत की सुनहली कड़ियों में सोने की जंजीर के सहारे लटक रही थीं और दीवारों में सोने की जड़ाऊ शाखों में बिल्लौरी फानूस चढ़े हुए थे। जड़ाऊ ब्राकेट में जड़ाऊ गुलदस्ते सजे हुए थे । दीवारों में चारों ओर सुनहले जड़ाऊ चौखटे में जड़ी हुई बहुत बड़ी और खूबसूरत तस्वीरें लटकाई हुई थीं । कमरे में उतनाही लंबा चौड़ा मिसर का बना हुआ बेशकीमत और दलदार रेशमी गद्दा बिछा हुआ था, जिसमें शिकारगाह बड़ी ही खूबी के साथ बनाई गई थी। उल गह पर पैर रखने से एक एक बालिश्त और उसमें धंस जाता और फिर जहांसे पैर उठाया जाना, फिर वह ( गहा ) ज्यों का त्यों ( बराबर ) होजाता था। कमरे में जा बजा जड़ाऊ तिपाइयां रक्खी हुई थीं, जिन पर पन्ने की तश्तरी, प्याले, लाजवर्दी सुराही और याकूती ग्लास तथा खिलौने स्वसे हुए थे। संदली इलामारियों में वेशकीमत जवाहिरात, गहने, जड़ाऊ खिलौने, बढ़ियां बढ़ियां पोशाक, सिंगार करने की चीजो, शराब की बोतलें, तस्वीरों के आलवम, किताबें और तरह तरह की चीजों सजी हुई थीं । एक ओर जवाहिरात के हाशिए और मोतियों की झालर की मसनद बिछी हुई थी, एक ओर पन्ने के पाए का निहायत उमदः छपरखट बिछा हुआ था, जिसकी रेशमी मसहरी जदोजी काम को थी और जिसमें जाबजा जवाहिरात लगे हुए थे और बड़े बड़े मोतियों की दोहरी झालरें लटक रही थीं। एक ओर कद् आदम कई आईने लगे हुए थे और एक और गोल मेज़ के चारो ओर कई जड़ाऊं कुर्सियां धरी हुई थी और उस पर चौसर, शतरंज और ताश रक्खे हुए थे। एक ओर कई किस्म के जाने सजे हुए थे और एक ओर