पृष्ठ:रज़ीया बेगम.djvu/९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
परिच्छेद)
९१
रङ्गमहल में हलाहल।


तरह तरह के बेशकीमल हथियारों की बहार थी।

कहने का मतलब यह कि संसार की सभी आवश्यक, सुंदर, बहुमूल्य और वेजोड़ चीजें उस ( सुलताना ) की खावयाह में सजी हुई थीं।

बेगम पर नज़र पड़ते ही जोहरा ने आगे बढ़कर और अदद रहे झुककर सलाम किया और कहा,-

हुजूर ! मैं अपना काम पूरा कर आई ।"

रजीया,-(वैसेही अघलेटी सी)" याकूब आया?"

ज़ोहरा,-"जोहां, जहाँपनाह ! हाज़िर है।

रजीया,-" तो उसे वहीं बुलाले।

"जो हुक्म;" कहकर जोहरा ने याकब की ओर देखकर इशारा किया और याकूब ने उस स्वर्ग को लजा देने वाले कमरे में पैर रक्खा और दोही चार कदम आगे बढ़कर उसने जमीन सक झुक कर सलाम किया।

ज़ोहरा वहांले टल गई और रजीया ने याकूब की भोर प्यासे नैनों से भरपूर घूरकर कहा,--

"मियां याकूब खां! आओ भई ! और नज़दीक आओ ! वल्लाह! तुम किस उलझन में मुबतिला हो! खुदा के वास्ते अपने दिल की धड़कन दूर करो और आओ, नजदीक आओ और बेतकल्लुफ़ी के साथ मेरे सवालों का जवाब दो।"