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पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/१३८

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श्रीकैलास बिहाइ आइ जहँ बसत पुरारी । गिरिजा हूँ सुख लहति चहत आनँद-बन भारी॥ हाट-बाट के ठाट लखि दोउ बालक जोहैं। हरित भरित लहि भूमि भूमि नंदीगन मोहैं । तिहिं कासी की करि बंदना ताही को बरनन करौं। रजध्यान सिद्ध अंजन समुझि हरषि हृदय आँखिनि धरौं ॥१॥