पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५२३

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कैयौं दीह दिल्ली-दल-बन-धन जारन का, दपटि दवानल स ताप तमकत है। चमकत कैौँ सूर-सरजा-दुधारा कियौँ, सहर सितारा कौ सितारा चमकत है ॥५॥ माचे सुर-पुर मैं उपद्रव कहूँ ना कडू, याही हम गुनत हिये मैं गरे जात हैं। कहै रतनाकर-बिहारी सौं सुरेस लखा, आनि आनि जमन असेस अरे जात हैं। काम सरजा के अरु नाम गिरिजापति के, ऐसैं मम धाम कौँ निकाम करे जात हैं। सनमुख जुद्ध के जुरैया जुरे जात अरु, सिव सिव भाषत भजैया भरे जात हैं ॥६॥ बाजी-घोर पाँड़े की कठोर पान-दंड दियौ, साजी सैन सरजा समत्थ बहुरंगी हैं। कहै रतनाकर चली न अली आदिल की, बिदलित कीन्हे दल पैदल तुरंगी हैं। फजल मुहम्मद के फजल फजूल भए, तूल भए आवत सलावत भडंगी हैं। लै लै ताप तुपक तुफंग जंग-साज भेंट, गोवा के फिरंगी र सिवा के भए संगी हैं ॥७॥