पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/५५५

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ध्या जिद ईसौ फनीस गुन सा सदा नावे सीस निखिल मुनीस-गन ज्ञानी हैं। तिन पद पाबन की परस-प्रभाव-पूँजी अवध-पुरी को रम रज में समानी ॥ (५) नाशिव-बदना अरक धतूरी नावि रहत सदाई श्राप भोग जथानोग बगरावत घने है। को रतनाकर त्यों संपति असेत देन निज कटि मेम धरि आनंद सने । ललकि लुटाइ दिव्य भूपन अपन जे दोपाकर भाल भव-भूपन गर्ने । पुरट पटंबर के अग्विल पटवर बोटि लव अंक दिगंबर बन गए। पेर बेर बिलखि विधाता सौ कुयर कई इम पै तिहारी पर संपति संभारी ना। कहै रतनाकर लुटाए देत संभु सबै देखी क ऐसी मति दान-मतवारी ना ।।