पृष्ठ:रत्नाकर.djvu/८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

9 , जाँचक-परंपरा याँ सुभ अधिकार जमाया, दलि स्वाच्छंद हि उपकारी नियमनि बगरायो । विद्या, तथा राज, उन्नति इक संगहि पाई, औ फैली अधिकारहि संग कला-कुसलाई एकहि रिपु सौं अंत दुहुनि की अलहन आई, भारत औ विद्या एकहि जुग अवनति पाई। अत्याचार संग सिर दुरविस्वास उठायौ, वह तन काँ ज्यौं, त्यौँ यह मन कौँ दास बनायौ बहुत जात मान्यौ हो, औ जान्यौ अति थोरी, औ दिल्लड़पन गन्या जात उत्तमता बोरी; या विधि दूजी प्रलय बहुरि विद्या पर आई, तुर्कारंभित बिपति, समाप्ति द्विजनि सौँ पाई ॥ पै नागेस भट्ट अति माननीय बर पंडित, विद्वज्जन-मंडलिहिँ करन गौरव सौं मंडित, तेहि अवनति-रत-काल-प्रवाह प्रबल ठहरायौ, रंगभूमि सौं मृषा विडं विनि काँ बहरायौ। बिट्टलेस गोस्वामी के सुभ समय, निबारति, सारद निद्रा, त्यक्त बीन, पुस्तक पुनि धारति; भारत की प्रतिभा प्राचीन बहुरि तहँ छाई, झारी धूरि, तथा ताकी बर ग्रीव उठाई ॥