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रवीन्द्र-कविता-कानन
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रवीन्द्रनाथ के अंगरेज समालोचक तो चित्रांगदा के अंगरेजी अनुवाद चित्रा पर मुग्ध हैं। वे नाटकों में 'विसर्जन' को रवीन्द्रनाथ का श्रेष्ठ नाटक मानते हैं। साथ ही उनका कहना है कि विसर्जन बंगला-साहित्य का सर्वश्रेष्ठ नाटक है। इसी समय 'सोनार तरी' निकली। इसकी अधिकांश कविताएँ छायावाद पर हैं। परन्तु हैं बड़ी सुन्दर। यह रवीन्द्रनाथ की नवीनता ले कर आयी। दूसरी कविताओं से इसकी प्रकाशन-धारा बिल्कुल नये ढंग की है। कुछ दिनों बाद 'चिना' निकली। जीवन के प्रथमार्द्ध काल में इससे अधिक मोहिनी सृष्टि रवीन्द्र नाथ की दूसरी नहीं। सौन्दर्य इसमें हद तक पहुँच गया है। कहते हैं इनकी 'उर्वशी' कविता संसार भर की श्रेष्ठ कविता है। उर्वशी आगे, उद्धरण में दी गयी है।

१८९५ ई० मे 'साधना' समाप्त हो गई। इसी साल 'चैताली' के अधिकांश पद्य निकले और १८९६ ई० में कविताओं का पहला संग्रह प्रकाशित हुआ। साधना के आने के कुछ ही समय बाद 'चैताली' छप कर तैयार हुई। 'चैताली' के नामकरण में भी कविता है। एक तरह के धान चैत मे होते है। उसी के नाम पर चैताली नाम रक्खा गया। चैताली यानी रवीन्द्रनाथ चैत के अन्तिम दाने चुन रहे हैं। १८८४ ई० के १९०० ई० के अन्दर रवीन्द्रनाथ की चार और प्रसिद्ध पुस्तकें निकलीं—कल्पना, कथा कहानी और क्षणिका।

१९०१ में मृत 'बंगदर्शन' में फिर से जान आई—रवीन्द्रनाथ उसके सम्पादक हुए।

इसी साल बोलपुर के पास वाले इनके आश्रम की नींव पड़ी। रवीन्द्रनाथ के के पिता महर्षि देवेन्द्रनाथ की यहाँ, ऊँची और खुली भूमि पर, बड़े-बड़े पेड़ देख कर साधना करने की इच्छा हुई थी। अब शांतिनिकेतन के नाम से यह संसार में प्रसिद्ध है। इस समय से ज्यादातर रवीन्द्रनाथ यहीं रहा करते थे। शांतिनिकेतन भारतीय ढंग का विश्वविद्यालय हो, यह रवीन्द्रनाथ की आन्तरिक इच्छा थी। भविष्य के विश्वविद्यालय को वे बतौर एक छोटे से स्कूल के चलाने लगे। कलकत्ता विश्वविद्यालय की शिक्षा से उन्हें बड़ी घृणा थी। वे इसकी बुनियाद तक खोद कर हटा देने के लिये तैयार थे। भारतीय ढंग से बालकों को शांतिनिकेतन में आदर्श शिक्षा मिलती है।

१९०१ ई० से १९०७ ई० तक रवीन्द्रनाथ ने उपन्यास लिखने में बड़ा परिश्रम किया। उनका 'गोरा' उपन्यास इसी समय निकला था। हृदय में