पृष्ठ:रवीन्द्र-कविता-कानन.pdf/३२

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२८ रवीन्द्र-कविता-कानन उत्साह भी उमड़ रहा था और वे सदा कर्म-तत्पर भी रहा करते । परन्तु एका- एक उनका सारा हौसला पस्त हो गया । जीवन की धारा ही बदल गई। १६०२ ई० में उनकी स्त्री का देहान्त हो गया । इस समय रवीन्द्रनाथ का धैर्य देखने लायक था। हृदय दो टूक हो गया था, परन्तु शान्त गम्भीरता के सिवा, प्रसन्न मुख पर दुःख की छाया भी नहीं पड़ी। गंभीरता की स्थिति में एकान्तप्रियता स्वभावतः बढ़ जाती है । अत: रवीन्द्रनाथ कुछ दिनों के लिये सांसारिक कुल सम्बन्ध तोड़ कर अलमोड़ा चले गये । उनका छोटा लड़का माता के बिना एक क्षण भी न रहता था । रवीन्द्रनाथ बच्चे के लिये पिता व माता दोनों ही थे। कथा को कुल कहानियाँ इन बच्चे के दिल-बहलाव के लिये ही लिखी गयी थी । इसी साल उन्होंने 'स्मरण' लिखा--'स्मरण' उनकी पत्नी को स्मृति पर लिखा गया था। इसके कुछ पद्य मर्मस्पर्शी हैं । सौन्दर्य को हृद तक पहुंचाना तो रवीन्द्रनाथ के लिय बहुत आसान बात है । १६०३ ई० में उन्होने एक दूसरा उपन्यास 'दी रेक' लिखा । इसमें हिन्दू परिवार का आदर्श दिखलाया गया है कि परिवार में एक दूसरे के प्रति हिन्दुओं की भाव-भक्ति, प्रम और सेवा किस तरह की होती है। १९०४ ई० में देश-भक्ति सम्बन्धी पद्यों का संग्रह, 'स्वदेश-संकल्प' के नाम से निकला । इसने बहुत जल्द लोक-प्रियता प्राप्त कर ली । १६०५ में 'खेया' निकली। इसी समय उनके छोटे लड़के की मृत्यु हो गई। १९०५ ई० में बंग-भंग आन्दोलन आरम्भ हुआ। बंगाल के कोने-कोने से एक ही आवाज उठने लगी। देश भक्ति दिखलाने का यह समय भी था। उस समय दल के दल बङ्गाली युवक स्वदेशी संगीत गाते हुए देश की जनता में नई आग फूंक रहे थे। परन्तु इस समय जितनी जोरदार आवाज रवीन्द्रनाथ की थी उतनी किसी दूसरे की नहीं सुन पड़ी। कहते हैं कि राजनीति सम्बन्धी रवीन्द्र- नाथ जैसे जोरदार और तर्क-सम्बद्ध प्रबन्ध अंगरेजी साहित्य में भी बहुत कम विलेंगे । विजय-मिलन, नामक वक्तृता रवीन्द्रनाथ के जोशीले गद्य का उदा- X x x कवीन्द्र रवीन्द्र एकाधार में दार्शनिक, वक्ता, लेखक, उपन्यासकार, नाट्य- कार, सुकवि और अच्छे अध्यापक हुए। आप अपनी नव नवोन्मेषशालिनी प्रतिभा को जब जिस और लगाते, वहीं वह अपना कमाल दिखा देती थी।