पृष्ठ:रवीन्द्र-कविता-कानन.pdf/८०

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रवीन्द्र-कविता-कानन सुनेछे से संगीतेर मतो! - - हृत्पिण्ड करिया छिन्न रक्तपद्म अर्ध्य-उपहारे भक्ति भरे जन्मशोध शेष पूजा पूजियाछे तारे मरण कृतार्थ करि प्राण ! सुनियाछि तारी लागी राजपुत्र परियाछ छिन्न कन्था विपम-विरागी पथेर भिक्षुक; - - -प्रिय जन करियाछ परिहास अति परिचित अवज्ञाय; गेछ से करिया क्षमा नीरव करुण नत्रे-अन्तरे वहिया निरुपमा सौन्दर्य प्रतिमा ! -सुधु जानी से ताहारी महान गम्भीर मंगल-ध्वनि सुना जाय समुद्र समीरे, ताहारि अंचल-प्रान्त लुटाई नीलाम्बर घिरे, तारि विश्वविजयिनी परिपूर्ण प्रेम मूर्ति खानी विकाशे परम ज्ञण प्रियजन मुखे ! सुबू जानी स विश्व-प्रियार प्रेमे क्षुद्रतार दिया बलिदान बज्जिते हइबे दूरे जीवनेर सर्व असम्मान सम्मुखे दांडाते हवे उन्नत मस्तक उच्चे तुलि- जे मस्तके भय लखे नाई लेखा दासत्वर धूलि आंके नाई कलंक-तिलक ! ताहारे अन्तरे राखी जीवन-कण्टक-पथे जेते हवे नीरव एकाकी, सुख-दुखे धैर्य धरी, विरले मूछियां अश्रु आंखी, तिदिवसेर कमें प्रतिदिन निरलस थाकी सुखी करी सर्व जने ! तार पर दीर्घ पथशेषे जीवयात्रा-अवसाने क्लान्त पदे रक्त-सिक्त वेशे उत्तरिव एक दिन श्रान्तिहारा शान्तिर उद्देशे दुःखहीन निकेतने ! प्रसन्न वदने मन्द हेसे पराब महिमा लक्ष्मी भक्त कण्ठे वरमाल्य खानी: