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रवीन्द्र-कविता-कानन
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'आमी सुधू बोसेछिलाम—
कदम गाछेर ढाले।
पूर्णिमा-चांद आट्का पड़े
जखन सन्ध्याकाले
तखन कि केउ तारे
धरे आनते पारे?'
सुने दादा हेसे केनो
बोलले आमाय 'खोका
तोर मतो आर देखी नाइ तो बोका!
चाँद जे थाके अनेक दूरे
केमन करे छुंइ!'
आमी बोलि 'दादा तुमी
जानो ना किच्छुई!
मा आमादेर हासे जखन
ओइ जानलार फांके
तखन तुमि बोलवे कि मा
अनेक दूरे थाके?'
तबू दादा बले आमाय खोका
तोर मतो आर देखी नाइ तो बोका।

बच्चा अपनी मां से कहता है—

(मैंने बस इतना ही कहा था कि जब पूनों का चाँद शाम को कदम्ब की डाली पर अटक जाय तब भला कोई उसे पकड़ कर ले आवे। मेरी बात को सुन कर दादा (बड़े भाई) ने हंसते हुए मुझसे कहा—'लल्ला, तेरे जैसा बेवकूफ तो मैंने नहीं देखा, चाँद कुछ यहाँ थोड़े ही रहता है जो मै उसे छू लूं। बहुत दूर रहता है।" दादा की बात सुन कर मैंने कहा, "दादा, तुम कुछ नहीं जानते। अच्छा उस झरोखे के दराज में जब हम लोग यहाँ से माँ को हँसते हुए देखते हैं तब क्या तुम कहोगे कि माँ बहुत दूर रहती है?" मेरे इस तरह कहने पर भी दादा ने मुझसे कहा, 'लल्ला, तेरे जैसा बेवकूफ तो मैंने नहीं देखा।')