पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१००

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रश्मि रेखा हिंडोला आओ बलिहारी जाल तुम झुलो आज हिंडोठे मैं झोटे दू तुम यह जाओ भूले पे अनबोले । मेरी अमराई में झूठा पडा एसीला चवर बुलात है रसाल के रसिक पण हरियाले रस लोभी अलिगण मडराते हैं काले भौराले सूना झूला देख उभर आते हैं हिय में छाले आओ पैग बदाभो झूले की तुम हौले हौले सजनि निछावर हो जाऊ तुम भूलो आज हिंडोले ।