पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/९९

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रश्मि रेखा प्रखर सूर्य सम या कि दु सम तुम सुदूर कल्पना बिदु सम दूर लक्ष्य सम झिल मिल दुगम कब से गगन पधारे ? अस्थिर बने रहो तुम तारे । (३) इस वदीय इतिहास-पाश में इस मित नेश विलास रास में कोटि-कोटि म प तर होकर भ्रमित श्रमित हिय हारे अस्थिर बने रहो तुम तारे । तव प्राङ्गण यह क्या अनन्त है। या कि कहीं यह अत पात है? कब तक कहो सुलझ पायगे चिर रहस्य ये सारे । अस्थिर बने रहो तम तारे । श्री गणेश कुटीर प्रताप कानपुर दिनांक २६ मान्च १६४ होलिको सब }