पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१३२

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रश्मि रेखा हाय हाय करिने की हमने कबहुँ न सीखी बान विधा हसी हू में सुनि लेते जो तुम देत कान । हासि आई है रुदन हमारी । कहा करें रसखान । जब तम नैंक न सुनत हमारी निज हठ ठानत हो प्राणधन तम नहिं जानत हो 1 जिला कारागार उन्नाव दिनार अप्रल १६३ रात्रि १ बजे } ९५