पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१३४

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रश्मि रेखा (२) जि हें मिला था मरण निमन्त्रण ही फिर से फूले मृत्यु अङ्क में सोकर फिर ये जीवन भूला झूले डूब मरण-नद में उत्तराए जीवन सरिता-फूले मानो मृत्यु कराल कल्पना चिर जीवन-रस पागी तरुवर आज हुए अनुरागी । सूखी शाखा सूखी छिनगी नव चिनगी सी चमकी अरुण-अरुण सी दीप शिखाएँ डाली-डाली दमकी जर्व ग्रीव जीवन लख छूटी बास भावमा यम की मागी जीवन की अनन्यता सब रश्चि ता भागी तरुवर आज हुए अनुरागी। (४) यो आई किसलय-कोमलना यों छाई हरियाली यो धाई सूखे में सरिता हहर घहर ध्वनि बाली नाथ उठी नन्दित निष्पन्दित तरु की डाली-डाली उपवन विपिन बमोन अपनी सफल अरसता यागी तरुवर आज हुए अनुरागी । ९७