पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१३५

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रश्मि रेखा (५) आज वायु आकर कहती है उनसे सरस कहानी और ठठोली भी करती है वह उनसे मन मानी यों जीवन की परम अमरता हम सब ने पहचानी यह अनन्स जीवन लख बोलो हम क्यों बन विरागी? तरुवर आज हुए अनुरागी । जीवन हो अशेष या हो वह केवल अस्थिर माया वह ऋत हो या निपट अमृत हो सत् हो या भ्रम छाया इतना ही है अलम् कि हमने यह जीवन-कण पाया क्या मिल गई अमरता उसको जिसने रोरो माँगी। तरुवर आज हुए अनुरागी । जिला कारागार नाष दिनांक ११ अप्रल १६४३ } १८