पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/१७४

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रश्मि रेखा वह तूली, जिसने सन्ध्या की मेघ-मण्डली थी रॅग डाली,- जिसने पंच-रङ्गी सत-रङ्गी रॅग से रॅग दी थी धन-जाली,- वह भी, श्याम वेदना-ग मे डूब, बन गई है अधियाली; अब भी क्या न पधारोगे, प्रिय, गगन-यान से आज उतरते ? देखो, हम तो तव स्वागत को खड़े हुये हैं डरते-डरते । श्री गणेश कुटीर, प्रताप, कानपुर, दिना २६ अगस्त, १६३६ रात्रि, सवा चारह बजे