पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/३५

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रश्मि रेखा उसी प्रकार देश को अन्यतत्र से निजतन्त्र में लाने की भावना ब्रिटिश सरकार की व्यवस्था को छिन्न मिल करने के रूप में राष्ट्रीय जागरण ने तरुणी और तक्षशिया को सिखाया। भारतवर्ष में ये दोना कातियों साथ चलती रही। बालकापा में ये दोना अपने परम रूप में की। मास वध की गिनती क्यों हो वहाँ जहाँ मन्वन्तर जूझें । युग परिवतन करने वाले जीवन-वर्षों को क्यों बूझे ? हम विद्रोही || कहो हमें क्यों अपने मग के कटक सूर्यो ? हमको चलना है ।।। हमको क्या हो अधियारी था कि जहाई ? हिय में सदा चाँदनी छाई।" परतु यह उनका गौरव है अथवा उनका भूवों का सा स्वभाव है कि उन्हाने अपनी वाणी को सास्कृतिक निमत्रण में ही अधिकतर खखा। फिर भी हमें उनके कान्य का मूल्यांकन उनके व्यक्तिव को प्रथक रख कर ही करना उचित है। शन्द चित्र से भाषा कतब से भाव जटिलता से अथवा दार्शनिक सकेतात्मकता स कवि परिपारियों यत से अव्यक्त की झाँकियाँ प्रस्तुत करती हैं। इस और बालकृष्णा का यान न था परत हुना देने वाले सगात के प्रवाह से बहाने सर्वन ही अपनी काव्य की ऐहिकता धो डाली है। गीत गीत ही रहे हैं। वास्तव म वही फूती धन्य है जिसको कला संगोपन और निराकरण की सीमायें देखती रहती है। सद्गुरुशरण अवस्थी २६