पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/३४

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रश्मि रेखा हो जान दे गक नशे में मत आने दे फक नशे में झान ध्यान पूजा पोथी के- फट, जाने वे वर्क नशे में । ऐसी पिला कि विश्व हो उठे एक बार तो मतवाला । साकी अब कसा विलम्न ? भर भर लात मयता हाला। (4) तू फैला दे मादक परिमल अग में उठ मविर रस छ छल अतल वितल चल अचल जगत में- मदिरा झलक उठे झवझल झल कल-कल छल-छल करती हिय तल से उमडे मदिरा बाला अब कसा विलम्ब ? साकी भर भर ला तू अपनी हाला । (६) कूज दो फूजे में बुझने पाली मेरी प्यास नहीं धार भार ला ! ला| कहने का समय नहीं अभ्यास नहीं ? अरे बहा दे अविरल धारा बू द बु द का कौन सहारा ? मन भर जाय जिया उतरावे डूबे जग सारा का सारा ऐसी गहरी ऐसी लहराती बलवा दे गुल्लाला । साफी अब कैसा विलम्ब ? दरका देशमयता हाग।'