पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/४४

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रश्मि रेखा उस दिन हम तुम दोनों बठे देख रहे थे बादल के दल उस दिन सिहर रहे थे पल-पल प्रिय हम दानों के अन्तस्तल आज वही भेघा आये हैं भर लाए हैं मगन लगन-जल देखो नो प्रिय छलक उठे है मेरे लोचन-किसलय-दोने कौन बात ऐसी है मरी जो तमसे हो छिपी सलोने? (६) हक बन्दी क लिये कहो तो क्या बरसात गई या आई! मेरी क्या आदी चित्रा यह ? मिय मेरी क्या शरद जुहाई? मा हेमन्त शिशिर ऋतु मेरी १ मेरी कॉन वसन्त-निकाई! खोकर सब ऋतु ज्ञान चला हू मैं तो आज स्त्रय को खोने । हैं खाली खाली रस भीने मेरे हिय के कोने-कोने । - केन्द्रीय कारागार बरेली विना १३ अन १६४३ } ७