पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/४३

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रश्मि रेखा ये धन गन जो घर पधारे आज उधर भी आए होंगे जो मेरे कारागृह छाए वे बौं भी तो छाये होंगे जो लाए रोमाच इधर वे पुलक उधर भी लाये होंगे तुम भी मौजोगे इनसे जो आए है यों मुझे भिगोने तुम्हारे बिन ही आए यों मेदिनी सजोने । मूरख मेघ (३) तुम्हें याद है धन-गजन-क्षण नित नूतन परिरम्मण मय है ये अटपटे हवा के झोंके बने स्मरण-अवलम्बन मय है पर ये मेरे लिये यहाँ तो आज बन गये कदन मय है ये समषज कर आये हैं अपने ही में मुझे हुबोने, और काटने दौड रहे है ये कारा के कोने-कोने । सब तुम्हें याद है वह दिन प्रियतम जब मदभरी घटा आई थी ? यह दिन जब नम के आँगन में धन एस रास छटा छाई थी? उस दिन तुमने भी तो हस हस नवरस-फुहियाँ बरसाई थी। जिनसे अब तक है मधु भीने मेरे हिय के कोने कोने । कौन नात ऐसी है मेरी जो सुमसे हो छिपी सलोने ? ६