पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/४६

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रश्मि रेखा (२) तव दग-अलजात-लुध मरी मधुकरी लगान - मन-सर विहरण-आतर बैठी हिय हार सजन नयनादक सिक पख चिर विछोह-पकिल मन गुन गुन की गान-तान उलझी अतर तर में विमल विकल सजल कमल बिलसे मम मन-सर में | मेरे प्रिय मरे हिय कान हूक जागी यह ? तुमने क्या खेल रचा? कैसी लो लागी यह ? मेरी सुध-बुध सलग तष रति-रस पाली यह आह धूम्र-यान चढ़ी डोल रही जग भर में चमके तव अरुण करुण नयन स्मरणा-अंबर में । जिनमें ग घुम्बन की सस्मृति उठ आई है अजलि में सुमन भरे - उठी हरे हरे बोलो अब तुम बिन मम माण प्राण कौन करे ? तवा पिन कौन भरे सागर मम गागर में ? चमके तव अरुण करुण नयन स्मरण-अधर में ! जिला जेल सचाव दिनांक विम्बर १४२ ९