पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/६३

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रश्मि रेखा मेरे प्राण पिरीत मजुल जनम-जनम के मीत अब तो असह हो रहा है यह फागुन का अविचार आज है होली का त्यौहार । प्राण जदपि रमे हा मम शोणित के कण कण में तुम फिर भी व्याकुल हू करने को मैं तब साक्षा कार कहा हो तुम मेरे सरकार ? मुख शशि चित्र निरख किमि धारे मन चकार जिय धीर ? यह उसुक है कि ले चलाएँ सम्मुख कहाँ हो तुम मेरे सरकार ? वारपार तुम बिन कसा राग-रग प्रिय कहाँ अनग तर ग ? कैस उठे तुम्हारे मिन मन धीणा झकार ? कहाँ हो तुम मेरे सरकार ? (७) यदि तुम सनिधान होत तो यह अपनी मुज माल डाल तुम्हारी श्रीवा में मैं करता तव शृगार आज है होली का त्यौहार ?