पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/६४

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रश्मि रेखा उनकी क्या होली-दीवाली ? उनक क्या त्यौहार ? जिनने निज मस्तक पर ओढ़ा जन विप्लव का भार !! कर्म-पथ है खाँडे की धार । यह सच है फिर भी मानव तो मानव ही है प्राण हिय में होने लगती ही है मनोरयों की रार । मदिर होते ही है त्यौहार ! केन्द्रीय कारागार बरेली दिनांक माच १९४४ होलिका दहन सवत् २ २७