पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/७०

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रश्मि रेखा जागो, मेरे प्राण-पिरीते मेरे प्राण पिरीते जागो मेरे प्राण पिरीते । मुदित बह रहा माल समीरण स्वप्निल निशि-क्षण परत जागा मेरे प्राण पिरीते। आम्बुधि में एने थककर तरण निरत सब तारे जो दो चार बचे है वे भी लगत है हिय-हारे । उच्छल अगम प्रकाश-जलधि से इनको कौन उबारे १ इस क्षण अरुणा ने निज स्मिति से नम अल थल सब जीते जागो मेरे माण पिरीते ।