पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/६९

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रश्मि रेखा सोच रहा हू मैं इस हिए की क्या गति होगी तव सम्मुख प्रिय ? उस क्षण कैसे सह पाएगा यह हिय सहसा उतना सुख प्रिय ? यह तो उस स्मृति से ही कप-कप देने लगा अमी से दुख प्रिय। अहो भाग्य यदि उस दशन-क्षण छोडें प्राण विहग निज पिंजर। लरज-लरज हिय सिरज रहा है नव नव मधुर काल्पनिक अवसर । बाँध रहा हूँ कई कई मनुहारे सचित है उस भाषी दशन क्षण में कई-कई सौ मसूबे मै अपने मन में यो बलि जाऊगा मैं जब तुम आओगे इस शून्य सवन में । यों ही सोच-सोच धाराए बह चलती है हग से झर झर । लरष-लरज हिय सिरज रहा नव नष मधुर काल्पनिक अवसर । जब चि तन मीलित निज लोचन तुम खोलोगे धीरे धीरे - जब मम हिय-रति नयन तुला पर तुम तोलोगे धीरे धीरे जब मम प्यासे श्रवणों में तुम मधु घालोगे धीरे धीरे तब क्या दशा हृदय की होगी जब तुम मुसकायोगे प्रियवर ? लरज लरज हिय सिरज रहा है नव नय मधुर काल्पनिक अवसर । केन्द्रीय कारागार बरेली दिनार २९ अग्रल १६४