पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/७२

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रश्मि रेखा मेरा मन तव दिग ही मडराया करता है मेरा मन । जैसे महरात है मलजों के दिग अलिगण । कमी मृदुल चरणों पर कभी मधुर श्रीमुख पर कमी सघन केसों पर कमी हगों पर रुककर करता ही रहता है मन गुन गुन ओ सुखकर ? उठती ही रहती है मम तन मन में सिहरन तव हिंग ही मडराया करता है मेरा मन ।