पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/७३

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रश्मि रेखा (२) यह मन त मिति घ ति में करता है निय स्नान और सतत गाता है प्रियतम तब विमल मान तव हग-सस्मरणों में अटके है विकल प्राण जमड उमड आत है मेरे लोचन-अल-कण । तव डिंग ही मडराया करता है मेरा मन | यद्यपि खण्डित-सा है मेरा कल्पना यान पर मरता रहता हूँ इसके बल मैं उडान मैं धनेश का लाज कैसे पुष्पक विमान मैं तो अपने ही वल करता हू गगन तरण ! तष डिंग ही रहता है मेरा यह उन्मन मन । केन्द्रीय कारागार परेली विभाध मई १६४ }