पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/७५

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रश्मि रेखा तृण सफुलित भूमि पर उमडी शादल अपार मानों अवनि-उदर पर उभरा हास त्रिवलि विस्तार प्राणधन बही विमुक्त बयार । व्यजन डुलाती पसन उडाती करती रस संचार तीळ-बन्धन को खिसकाती गाती राग मलार प्राणधन मादक बही बयार ! (४) इस बयार के शीत परस स मची हिये रार जाग उठे है परिरभण के विचार प्राणधन मादक नहीं बयार । सोए <