पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/७७

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रहिम रेखा मम मन-पछी अकुलाया प्रिय तव स्वेद खेद हरने को मम मन पछी अकुलाया। धवल मनोरथ पख यजन सम फर फर करता उड़ धाया मम मन पछी अकुलाया। (१) म मुखाम्बुज मलित होगा व्यय धर्म सीकर कण से बरबस झर झर उठती होगी बू दे चिंतित लोचन से नित सताप ताप की अष्मा उठती होगी मृदुः तब नप देह प्रसून प्राणधन अब तो होगा कुम्हलाया खेद स्वेद हरने को मेरा यह मन पछी अकुलाया।