पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/८१

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रश्मि रेखा सजल नेह धन-भीर रहे जग क मन-अम्बर में निशि दिन सजल नेह घन मीर रहे दामिनि रेखासी करुणा की हिय में एक लकीर रहे । सदा प्रेम घन फुहियाँ बरसे जग रोमावलियों सिहरे नव सनेह रस मीने भीने दिशि-दिशि सब जग जन विहरें सकल दिशाएँ हरी-भरी हों धरती माँ हुलसे फूले अग उपवन में स्नेह कोकिला डाली-डाली पर झूले स्नेह-मलय धनसार* भार से श्वास समीरण धीर बह जग के नील गगन में निशि-दिन सजल नेह घन भीर रहे । पनसार कर