पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/८४

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रश्मि रेखा जोगी खडे है कब से हम अनजान ! नग्न घरण आँखे आकुल हिय विक्षत सुख अम्लान । खडे है कन से हम अनजान । हम परसों से अलख जगाते रह तुम्हारे द्वार तनिक झरोखे से झुक आँको हुलसा दो ये प्रान खडे हैं कब से हम अनजान ! हम है अलमस्ताने जोगी हम क्यों माँगे भीख ? ओ लजवन्ती ले लो आए देने हम हिय दान खडे है हम कब से अनजान । ४७