पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/८५

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रश्मि रेखा (३) तुमने जी भर खूब दिया है अब न भीख की चाह इतना प्यार नेह रस इतना जीवन का सम्मान खड़े हैं हम कर से अनजान । इतना लिया दिया इतना फिर भी हम खडे अबोध आएँ कहाँ बताओ ले देकर इतना सामान ? खड़े हम इसीलिए अनजान | --- (4) अब तो यह विश्वास जम गया कि बस यही है शाति यहीं तुम्हारे हारे है इस जीवन का कल्याण खडे हम इसीलिये अनजान ! रेलपथ बाबा से कानपुर