पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/९३

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रश्मि रेखा (२) शू य भवन में सजा संजोई मैंने दीपक बाती जधर मेघ माला ने हॅक ली है अम्बर की छाती लुप्त हो गई अंधकार में नम की दीपावलियों निविड़-तिमिर में पड़ी हुई है जग-मग की सब गलियाँ किन्तु तुम्हें सफेत दान हित मेरा घर जगमग है आओगे तो तुम देखोगे प्रहरी यहाँ सजग है क्यों न आज तुम लिये लफुटिया कीच गू धत आओ? क्यों न घरण प्रक्षालन हित मम हग झारी दरकाओ पथ पङ्कमय सही कि तु मत आने में अलसाआ सनिक देर को तो आकर मम शुन्य-सदन हुलसाओ यदि आ जाना तो मिट गए खटका अब-तब का प्रिय ! लो डूब चुका है सूरज ना जाने कबका ? श्री गणश फुटीर प्रताप कानपुर । 4€