पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/९६

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रश्मि रेखा साजन लेंगे जोगरी सुना है सखी हमारे साबन लेंग जोगरी हमें दान में दे जाएगे षे विकराल त्रियोग री। इस चौमासे के सावन में धन बरसें दिन रात री ऐसी ऋतु में भी क्या होती कहीं जोग की बात री धन धारा में टिक पाएगी कैसे अंग भमूत री धुल जाएगी इक छिन भर में यह विराग की छूत री अभी सुना है सजन गरुए वस्त्र र गेंगे आज री और छोड देंगे वे अपनी रानी अपना राज री हिंय म थन शीला रति में भी यदि न विराग विचार री तो फिर वाघ आवरण भर में है क्या कुछ भी सार री? प्रम नि य स यास नहीं तो अन्य याग है रोग री सखी कहो ले रह सजन क्यों व्यर्ष अटपटा जोग री?