पृष्ठ:रश्मि-रेखा.pdf/९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रश्मि रेखा ओ पागल (२) पपिहा मत बिलखो कि पी कहाँ ? पी यहाँ पी यहाँ मत दू दो उनको जहाँ-जहाँ सजन जहाँ रम रह है वहाँ पपिहा पिऊ यहाँ -का नवल सदेसा आज सुनाओ हाँ मेरे पिंजरे के शुकदेव आज तुम मगल गाओ बहो पवन लिपटी लहराती मा हहराती अब ता तुम हो बहुत सुहाती आए हैं मम सजन सगाती पावस विथा हुई है दूर पवन तम अब मडराआ हा मेधा आषो मेरे अगना दुदुभि आज बजाओ हाँ श्रीगणेश कदीर प्रताप कानपुर विनाश १ जुलाई १९३६ } 4c