पृष्ठ:रसकलस.djvu/१०२

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. , कर देता है, जैसा चहकता और उमंग में भर जाता है, वह किस प्रवृत्ति का परिचायक है ? क्या उस रागमयी का अनुराग ऐसा कराता है, या उसका सौंदर्य अथवा उसका विकास ? कुसुमाकर जब कुसुमावलि का माल्य धारण कर दिशाओं को सुरभित करता है, पादपपक्ति को नवल फल दल सभार से सजाता है, तो कोयल क्यों उन्मादिनी वनती है; क्यों रात गत भर बोलती है ? क्यो कृक-कृक कर कलेजा निकाले देती है । ज्या इनका कोई पारम्परिक संबंध है ? क्या प्रेमोन्माद ही तो उसे उन्मादिनी नहीं बनाता । जब धन गगन मडल मे घिर जाते हैं, मंद मंद गरजते हैं. कभी घूमते हैं, कभी रस बरसाते हैं, तब पपीहा क्यो पी-पी की रट लगाता है, मयूर क्यो मत्त होकर नर्तन करता है, धन-पटल को अवलोकन कर इनको कौन रस मिलता है ? कौन से आनद की धारा इनके मानसी में बहने लगती है, क्या इन चातो में कोई रहस्य नहीं ? पागवन कितना प्यारा पत्नी है, सौदर्य की तो वह मूर्ति है । जिस समय यह अपने नीलाभ गले की फुलाकर योलने लगता है, अपनी पूछ को कुका पौर फैलाकर नृत्य प्रारभ करता है, उस समय उसकी विहंगिनी हो उस पर मुग्ध नहीं होती, बरन उसे उस अवस्था मे जो देखता है, बहो मोह जाना है। उसका यह मोहक रूप न्यो ? क्या ये सव शृङ्गार रन के हो कौतुक नहीं ? मृग फुलो पर गॅजता फिरता है. कभी उनपर बैठता है, कभी उनसे रम ग्रहण करता है और कभी एक पुप्प का रज वहन करके दूसगे तक पहुचा पाना है। तितलियों नाचती फिरती हैं, चमचमकर फूलो की बना लेती हैं। उनसे गले मिलती हैं. अपने रंग में उन्हें और उनके रंग ने अपने को रंगती है और फिर न जाने कहाँ चार माटती हई चली जाती है. । मधुमयी चुपचाप आती है. फलो के साथ बिहार करती है, उनसे रमनचय करती है. कुछ को पी जाती है. और का निय ममल्ती, बचती न जाने कहाँ में कहीं पहुंच जाती है । यदि हम 7