८६ ऑख उठाकर देखें, तो अपने चारो ओर असख्य कीट-पतगों को, इसी प्रकार के कार्यों मे रत पायेंगे । प्राणी ही नहीं यदि हम अतर्दृष्टि से काम लेगे, तो पेडों और लता बेलियों क्या फूल-पत्तों तक में कामदेव के साथ रति देवी विहार करती मिलेंगी, और वहीं रस रूप में शृगार देव भी अपना प्रभाव विस्तार करते हुग्गोचर होगे । वास्तविक बात यह है कि ससार मे जो कुछ है, वह सब एक दूसरे के साथ अदृश्य सूत्र से ग्रथित है । यह संबध मानव बुद्धि से परे भले ही हो, कितु इस सबंध द्वारा कहीं ज्ञात और कही अनात रूप से ससार का सृजनादि समस्त मगल- मूलक कार्य यथा कालाहोता रहता है । एक अगरेज विद्वान् कहता है- “All things by immortal power To each other linked are, Near or far, That thou canst not stir a flower. Hiddenly Without troubling of a star" "समस्त वस्तुएँ चाहे वे दूर-दूर हो, चाहे पास-पास, एक अनत शक्ति के द्वारा गुप्त रीति से एक दूसरे से लगाव रखती है। तुम बिना एक सितारे को प्रभावित किये हार, एक फूल को भी नहीं तोड़ सकते ।" -'सुधा' संख्या २४ पृ० ५४८ । शृगार रस की व्यापकता का एक मनोहर चित्र प्रसग सूत्र से कविकुलगुरु कालिदास ने अपने कुमारसभव नामक ग्रथ मे वडी सहृदयता से अकित किया है, उसको भी देखिये । जिस समय भगवान् भवानीपति पर आक्रमण करने के लिये, कुसुमायुध अपनी पूर्ण शक्ति का विस्तार कर प्रयाण करता है, उस समय की दशा का वर्णन वे यो मधु द्विरेफ. कुसुमैकपात्रे पपी प्रिया स्वामनुवर्तमान । गेण च स्पर्शनिमीलितादी मृगीमकण्डूयत कृष्णसार ।
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