१६६ . स्वार्थी और व्यभिचारी लोग दुनिया मे रहेंगे, तब तक गदा साहित्य प्रकट करनेवाले और पढ़नेवाले भी रहेंगे। उर्दू-साहित्य अश्लीलतामय है, उसमे चिरकी और जाफर जटल ऐसी कुत्सित प्रवृत्ति के कवि हो गये हैं, कि जिनकी जितनी कुत्सा की जावे थोडी है । चिरकी का एक दीवान है, जो मलमूत्र के वर्णन से भरा पड़ा है। जाफर जटल भी उनसे पीछे नहीं है, गंदा मजमून लिखने मे वह अपना सानी नहीं रखता। इसीलिये मौलाना हाली यह लिखने के लिये विवश हुए- बुरा शेर कहने की गर कुछ सजा है । अबस झूठ बकना अगर नारवा है । तो वह महकमा जिसका काजी खुदा है । मुकर्रर जहाँ नेको बद की सजा है । गुनहगार वाँ छूट जावेंगे सारे। जहन्नुम को भर देंगे शायर हमारे । जब इन बातो पर दृष्टि डाली जाती है, तो ब्रजभाषा के अपरिमार्जित रुचि के कवियो के अपराध की मात्रा अपेक्षाकृत न्यून हो जाती है, क्योकि उनका इतना पतन नही हुआ। फिर भी वे क्षमा नहीं किये जा सकते । क्योकि जिनको जगत् का पिता माता माना, उनका सुरत वर्णन करते उनकी लेखनी कुठित नहीं हुई । साहित्यदर्पणकार ने यह लिखा है- 'सुरतारम्भगोष्ठ्यादावश्लीलत्व तथा पुन' 'जहाँ कामगोष्ठी हो वहाँ अश्लीलत्व गुण होता है। कुछ लोग इस सूत्र से यह अनर्गल प्रलाप करते है, कि जव कामगोष्ठी मे अश्लीलत्व गुण होता है, तो सुरत वर्णन में जो अश्लीलता मिले, वह मदाप नही कही जा सकती । ज्ञात होता है सस्कृत के कुछ साहित्यकारों ने सुरत वर्णन मे जो अनुचित स्वतत्रता ग्रहण की है, उसका आधार इसी प्रकार का कोई प्राचीन सूत्र होगा। परतु बाम्त- के आधार
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