१६५ चाया। हॉ, राधा कृष्ण की माधुर्य उपासना का रंग उनमें लबालब भरा है। यह सब जानते 'और मानते हुए भी यह कहना पड़ता है कि ब्रज- भापा मे कुछ ऐसी रचनाएँ है जिनमे वीभत्स कांड की पराकाष्ठा हो गई है । मैं उदाहरण के लिये कुछ ऐसी कविताएँ उद्धृत कर सकता हूँ, कितु ऐसा करना युक्तिसंगत नही ज्ञात होता। जिस अश्लीलता को निदा की जा रही है, उसी से इस ग्रथ के कलेवर को कलंकित करना क्या उचित होगा? ऐसी रचनाये प्राय. नायिका भेद के रीति ग्रंथो मे पाई जाती है। प्रेम के रंग में रंगकर केवल प्रेम के निरूपण अथवा वर्णन में जो कविताएँ की गई अथवा ग्रंथ रचे गये उनमे इस प्रकार का दोप बहुत कम मिलता है। हृदय के उद्गार मानसिक भावो के चित्र होते हैं। मनुष्य जैसा सोचता विचारता है, वैसे ही भाव अवसर आने पर प्रकट करता है । जो व्यसन-प्रिय है, जिसको नग्न चित्र अंकित करना ही प्यारा है, उससे यह आशा नही हो सकती, कि वह परमार्जित रुचि की बात लिखेगा, अथवा कहेगा । संसार विचित्रतामय है, उसमें सभी प्रकार के लोग हैं। इसलिये यह नहीं सोचा जा सकता कि कभी इस प्रकार के लोग पृथ्वी मे न रहेंगे। यदि यह सत्य है तो यह भी सत्य है, कि अश्लीलता का किसी काल मे लोप न होगा, वह सदा रहेगी, समयानुकूल उसमे थोड़ा बहुत परिवर्तन भले ही होता रहे। कोई देश ऐसा नहीं जिसमें इस प्रकार के मनुष्य न हों, कोई समाज ऐसा नहीं, जिसमें यह रोग न लगा हो, और कोई साहित्य-सुमन ऐसा नहीं, जिसमे यह कंटक न हो। विश्व मे सुरुचि के लिये ही जगह है, कुरुचि के लिये नहीं, यह नहीं कहा जा सकता। 'त्यागभूमि' के तीसरे वर्ष के छठे अंक पृष्ठ ६८३ मे महात्मा गांधी का एक लेख 'नव-जीवन' से उद्धृत हुआ है, उसमे वे लिखते हैं- 'कोई देश और कोई भापा गंदे साहित्य से मुक्त नहीं है। जब तक
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