१६८ प्रभावित था, और उनकी सभ्यता धीरे-धीरे उसके अतस्थल में वेसे ही प्रवेश कर रही थी, जैसे आजकल पाश्चात्य रहन-सहन की प्रणाली उसके हृदय में स्थान ग्रहण कर रही है । मुसलमानो के माम्राज्य का सबसे अधिक प्रभाव भारतवर्प पर अकबर के समय में पड़ा; जहाँगीर और शाहजहाँ के समय में वह अक्षुण्ण रहा, औरंगजेब के समय में उसका ह्रास प्रारंभ हो गया । ब्रजभापा के प्रसार, विस्तार और समुन्नति का प्रधान काल यही है । इन डेढ सौ बरसों मे जैसा उसका शृगार हुआ, जैसा वह फूली फली, जैसे सहृदय कवि उसमे उत्पन्न हुए, फिर वैसा नहीं हुआ । जैसा आजकल के शासको का प्रभाव उनको सभ्यता रंग-ढग एवं उनकी रीति नीति का असर भारत की भाषाओं और भावों पर पड़ रहा है उस समय वैसा ही प्रभाव मुसलमान शासको की प्रत्येक बात का ब्रजभापा के साहित्य पर पड़ा था । कारण यह कि-यथा राजा तथा प्रजा । मुसलमान जाति विलास-प्रिय है । उमका साहित्य विलासिता के भावो से मालामाल है । प्रेम की कहानियो और प्रेमी एव प्रेमिकाओ के रग रहस्यो, और चोचलो की उसमें भरमार है । फारसी की कविताओं मे क्या है, इस बात को आप मुसलमानों की उर्दू कविताओ को पढ़कर जान सकते हैं, क्योकि वही इसकी उद्गम भूमि है । उर्दू में जो हास, विलास, जो प्रेम के ढकोसले, पचडे, वखेड़े मिलते हैं, उसमें जो लपटता कामुकता, लिप्सा और वासनाओ के बीभत्स काड दृष्टिगत होते हैं, वे सव फारसी ही से उसे मिले हैं, फारसी के ग्रथ ही मुसलमान साहित्य के सर्वस्व हैं। उसपर अरवो की सस्कृति का भी बहुत बडा प्रभाव है, परतु पारस की सस्कृति का रंग ही उसका निजस्व है । इन दोनों सरक- तियों से जैसी खिचड़ी पकी, उसका आस्वाद फारसी के साहित्य प्रथों मे खूब मिलता है । वास्तविक बात यह है कि मुसलमान उनसे प्रभावित हैं और वे उनकी चिर सस्कृतियो के दर्पण हैं । जो अकबर बडा सभ्य और शिष्ट समझा जाता है, उसके मोनावाजार की बातों को सुनकर .
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